जन्म कुंडलियाँ औऱ ग्रंहो की प्रधानता

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जन्म कुंडलियाँ औऱ ग्रंहो की प्रधानता

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सूर्य प्रधान जन्मकुंडलियो में जीवन में कुछ हो ना हों परन्तु रौब बहुत होता है यहाँ लाख अभाव में भी जातक की सामाजिक रूप से चलती है, उसका रुतबा बना रहता है…

चंद्र प्रधान कुंडलियों में जातक स्वीट पोइजन की तरह अपने दुश्मनों का सफाया करता है ऐसा जातक अपने ही वेग़ में पूरी शांति के साथ बढ़ता औऱ फैलता जाता है औऱ लोग समझ ही नहीं पाते की ये व्यक्ति कब उत्पन्न हुआ औऱ कब इतना फ़ैल गया…

मंगल प्रधान कुंडलियों में जातक विपरीत से विपरीत समय में भी अपनी ऊर्जा नहीं खोता औऱ वो अपनी ऊर्जा के बल पर बार बार बुरे समय कों पराजित करके स्थिर हों जाता है ऐसे लोगों कों समाज कत्तई हल्के में नहीं लेता, लोग डरते हैँ इनसे, इनके शत्रु भी इनसे सदैव भयभीत ही रहते हैँ…

बुध प्रधान कुंडलियो में जातक का वक़्त कितना भी बुरा समय क्यों ना हों परन्तु वह उसे अपनी बुद्धि के बल पर मात दे देता है जातक इतना कुटिल औऱ तेज होता है की यहाँ उसकी कोई काट नहीं होती, वह समय पर शत्रु को मित्र औऱ मित्र को शत्रु बनाने की क्षमता रखता है…

गुरु प्रधान कुंडलियों में जातक कों मृत्यु के सिवा औऱ कोई पराजित नहीं कर सकता,क्यूंकि ऐसे जातकों की रक्षा धर्म स्वयं ही करता है ऐसे जातक ईश्वर के अति कृपा पात्र होते हैँ औऱ वह अधर्म के विरुद्ध निरंतर युद्ध लड़ने के बाद भी अपराजेय बने रहते है 

शुक्र प्रधान कुंडलियों में ऐसा जातक अभाव से अभाव में भी मौज मस्ती औऱ आनंद की अनुभूति प्राप्त कर ही लेता है औऱ ऐसे लोगों के बाहरी आवरण कों देखकर लोग इनके आंतरिक खोखले पन का कभी अंदाजा ही नहीं लगा पाते, औऱ वह इस बात से भ्रमित रहते हैँ की इसका जीवन बहुत सुखमय होगा, वह बहुत रइस होगा, इसके पास बहुत पैसा होगा …

 

शनि औऱ केतु प्रधान कुंडलियां कर्म भोग की कुंडलियां होती है,ये प्रारबद्ध के बुरे कर्मो को भोगने के लिए ही जन्म लेते है परन्तु ये लोग संघर्ष के साथ जिंदगी का सामंजस्य बिठाना सीख लेते है औऱ एक उम्र के बाद इन्हे उसी में आंनद आने लगता है…

राहु प्रधान कुंडलियाँ प्रारबद्ध के पुण्य कर्मो के कारण पूर्ण होने वाली मनोकामनाओं के जन्म की कुंडलियां होती हैँ जबतक इनका पुण्य शेष रहता है तब तक यें खूब उत्पात मचाते हैँ औऱ जब इनका पुण्य क्षीन हों जाता है तब फिर यें इस पृथ्वी पर ही नर्क भोगते हैँ….

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